Madhu varma

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लेखनी कविता - जब आग लगे... -रामधारी सिंह दिनकर

जब आग लगे... -रामधारी सिंह दिनकर


सीखो नित नूतन ज्ञान, नई परिभाषाएं,
जब आग लगे, गहरी समाधि में रम जाओ;
या सिर के बल हो खड़े परिक्रमा में घूमो।
 ढब और कौन हैं चतुर बुद्धि - बाजीगर के?

गांधी को उल्‍टा घिसो और जो धूल झरे,
उसके प्रलेप से अपनी कुण्‍ठा के मुख पर,
ऐसी नक्‍काशी गढ़ो कि जो देखे, बोले,
आखिर, बापू भी और बात क्‍या कहते थे?

डगमगा रहे हों पांव लोग जब हंसते हों,
मत चिढ़ो, ध्‍यान मत दो इन छोटी बातों पर
 कल्‍पना जगदगुरु की हो जिसके सिर पर,
वह भला कहां तक ठोस क़दम धर सकता है?

औ; गिर भी जो तुम गये किसी गहराई में,
तब भी तो इतनी बात शेष रह जाएगी
 यह पतन नहीं, है एक देश पाताल गया,
प्‍यासी धरती के लिए अमृतघट लाने को।

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